उत्तराखंड के देहरादून में त्रिपुरा के रहने वाले छात्र एंजेल चकमा की पीट-पीटकर और चाकू मारकर हत्या के मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना को लेकर पहले देहरादून पुलिस ने बयान दिया था कि संभव है नस्लीय टिप्पणी मजाक में की गई हो, जिसे एंजेल और उसके भाई ने गलत समझ लिया। लेकिन अब एंजेल चकमा के चाचा मोमेन चकमा का बयान सामने आया है, जिसने पुलिस की इस थ्योरी को सिरे से खारिज कर दिया है और इसे साफ तौर पर नस्लवाद से जुड़ा मामला बताया है।
मोमेन चकमा ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि यह घटना किसी भी तरह से मजाक नहीं थी, बल्कि सुनियोजित हमला था। उन्होंने बताया कि जब एंजेल और उसका भाई माइकल बाजार में कुछ सामान खरीदने गए थे, तभी वहां पहले से नशे में धुत कुछ लोगों ने उन पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। जब माइकल ने इसका विरोध करते हुए उनसे ऐसा न करने को कहा, तो आरोपियों ने उस पर हमला कर दिया। इसके बाद एंजेल अपने भाई को बचाने के लिए आगे आया, लेकिन हमलावरों ने उस पर भी बेरहमी से हमला शुरू कर दिया।
“यह मजाक नहीं, सीधा नस्लवाद है”
मोमेन चकमा ने साफ शब्दों में कहा,
“उन्होंने एंजेल को पीटना शुरू कर दिया और फिर चाकू मार दिया। किसी ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। उत्तराखंड पुलिस कह रही है कि यह नस्लवाद नहीं है, लेकिन हमारे लिए यह पूरी तरह से नस्लवाद का मामला है।”
उनका कहना है कि अगर यह केवल मजाक होता, तो बात मारपीट और हत्या तक नहीं पहुंचती। चाचा के मुताबिक, एंजेल और उसका भाई सिर्फ इसलिए निशाना बने क्योंकि वे पूर्वोत्तर भारत से थे और उनकी पहचान अलग थी।
चकमा छात्र संघ का पुलिस पर गंभीर आरोप
इस मामले में चकमा छात्र संघ ने भी देहरादून पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। छात्र संघ के प्रतिनिधि विपुल चकमा ने आरोप लगाया कि शुरुआत में पुलिस इस केस में कोई ठोस कार्रवाई नहीं करना चाहती थी। उन्होंने कहा कि पुलिस ने पीड़ित परिवार और छात्रों को परेशान किया और मामले को हल्के में लेने की कोशिश की।
विपुल चकमा के अनुसार, एंजेल के पिता तरुण चकमा, जो मणिपुर में सीमा सुरक्षा बल (BSF) में तैनात हैं, ने भी यही आरोप लगाए थे। उन्होंने बताया था कि देहरादून पुलिस ने शुरू में उनकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया था। छात्र संघ और स्थानीय लोगों के दबाव के बाद करीब 48 घंटे बाद एफआईआर दर्ज की गई, जिसने पुलिस की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए।
पुलिस का पक्ष और विवादित बयान
इस पूरे मामले में देहरादून के एसएसपी अजय सिंह का बयान भी विवादों में रहा। उन्होंने कहा था कि जिन टिप्पणियों पर एंजेल चकमा ने आपत्ति जताई थी, वे नस्लवादी टिप्पणी की श्रेणी में नहीं आतीं, क्योंकि एक आरोपी भी उसी राज्य से है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि संभव है टिप्पणियां ‘मजाक’ में की गई हों।
हालांकि, पीड़ित परिवार और छात्र संगठनों का कहना है कि इस तरह के बयान मामले की गंभीरता को कम करने की कोशिश हैं और इससे न्याय की उम्मीद कमजोर होती है।
हमले की पूरी घटना
गौरतलब है कि 9 दिसंबर को एंजेल चकमा और उसके भाई माइकल पर यह जानलेवा हमला हुआ था। स्थानीय लोगों के साथ हुआ विवाद इतना बढ़ गया कि आरोपियों ने चाकू और अन्य हथियारों से उन पर हमला कर दिया। माइकल के सिर पर गंभीर वार किया गया, जबकि एंजेल की गर्दन और पेट में चाकू घोंपा गया, जिससे उसकी मौके पर ही हालत गंभीर हो गई और बाद में उसकी मौत हो गई।
गिरफ्तारी और आगे की कार्रवाई
पुलिस ने इस मामले में अब तक पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से दो नाबालिग हैं और उन्हें किशोर सुधार गृह भेजा गया है। आरोपियों में से एक, जो नेपाल का नागरिक है, घटना के बाद से फरार है। उस पर 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया है और उसे पकड़ने के लिए एक पुलिस टीम नेपाल भी भेजी गई है।
यह मामला अब सिर्फ एक हत्या का नहीं, बल्कि नस्लवाद, पुलिस की संवेदनशीलता और न्याय व्यवस्था पर बड़ा सवाल बन चुका है। एंजेल चकमा के परिवार और छात्र संगठनों की मांग है कि इस केस को नस्लीय हिंसा मानते हुए सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।