अमेरिका ने ईरान के करीब एक अरब डॉलर के तेल व्यापार पर एक बार फिर से सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह कदम खासतौर पर ईरान को मिलने वाली आर्थिक मदद को रोकने के लिए उठाया गया है, जो हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने में इस्तेमाल हो रही है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि इस नए प्रतिबंध का मकसद ईरान के तेल व्यापार से जुड़े अवैध वित्तीय लेन-देन को रोकना और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना है।
अमेरिका ने क्यों लगाए ये नए प्रतिबंध?
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेन्ट ने बताया कि ईरान के साथ न्यूक्लियर डील पर बातचीत शुरू होने से पहले ही ईरान के तेल व्यापार के लिए मिलने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगाना जरूरी हो गया था। अमेरिका का मानना है कि हिजबुल्लाह, जो कि एक आतंकवादी संगठन है, ईरान से तेल खरीदता है और फिर उसे ईराक के तेल के नाम पर बेचकर मुनाफा कमाता है। इस तरीके से मिलने वाली रकम आतंकवादी गतिविधियों में लगाई जाती है, इसलिए अमेरिका इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।
हिजबुल्लाह की वित्तीय संस्था की भूमिका
ट्रेजरी सचिव ने यह भी बताया कि हिजबुल्लाह की वित्तीय संस्था अल-क़र्द अल-हसन ने लाखों डॉलर के वित्तीय लेन-देन किए हैं, जो सीधे आतंकवादी संगठन को फायदा पहुंचाते हैं। यह संस्था ईराक के व्यवसायी सलीम अहमद सईद की कंपनियों को फंडिंग करती है। सलीम की कंपनियां 2020 से ईरान से तेल खरीद रही हैं और उसे ईराकी तेल में मिलाकर अरबों डॉलर का मुनाफा कमा रही हैं। इस व्यापार का सीधा लाभ हिजबुल्लाह को होता है, जिसके कारण अमेरिका ने इस व्यापार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं।
प्रतिबंधों के प्रभाव और नुकसान
ट्रेजरी सचिव ने स्पष्ट किया कि अमेरिका ईरान के राजस्व स्रोतों को निशाना बनाता रहेगा ताकि देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़े और क्षेत्रीय अस्थिरता को कम किया जा सके। साथ ही, अमेरिका ने कई समुद्री जहाजों और वित्तीय संस्थाओं को भी प्रतिबंधित किया है, जो ईरान के अवैध तेल तस्करी में संलिप्त हैं। इन जहाजों और संस्थाओं के माध्यम से ईरान का काला बाजार तंत्र काम करता है, जिससे मिलने वाला पैसा आतंकवादी समूहों जैसे हमास, हूती विद्रोहियों और हिजबुल्लाह को जाता है।
इस प्रकार के प्रतिबंधों का उद्देश्य न केवल ईरान के तेल व्यापार को रोकना है बल्कि उससे जुड़ी आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित करना है, ताकि आतंकवाद और क्षेत्रीय तनाव को नियंत्रित किया जा सके।
ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंधों का इतिहास
अमेरिका ने ईरान के तेल व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की शुरुआत 2018 में की थी, जब ईरान ने परमाणु समझौते (JCPOA) से खुद को अलग कर लिया था। उस समय से लेकर अब तक अमेरिका ने लगातार ईरान की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए तेल व्यापार पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का मकसद था ईरान को अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम पर बातचीत के लिए मजबूर करना और उसे वैश्विक स्तर पर आइसोलेट करना।
हालांकि ईरान ने कई बार इन प्रतिबंधों का विरोध किया है, लेकिन अमेरिकी सरकार ने हर संभव तरीका अपनाया है कि ईरान को अपने परमाणु और आतंकवादी प्रोग्राम पर पीछे हटना पड़े।
क्षेत्रीय और वैश्विक असर
ईरान के तेल व्यापार पर लगाए गए ये प्रतिबंध क्षेत्रीय राजनीति को भी प्रभावित करते हैं। मध्य पूर्व में ईरान की भूमिका और उसके समर्थन वाली आतंकवादी गतिविधियां कई देशों के लिए चिंता का विषय हैं। अमेरिका की यह रणनीति न केवल ईरान को आर्थिक रूप से कमजोर करती है, बल्कि उसके आतंकवादी नेटवर्क को भी आर्थिक संकट में डालने का प्रयास करती है।
इसके अलावा, यह प्रतिबंध वैश्विक तेल बाजार और आर्थिक संतुलन पर भी असर डालते हैं। कई देश ईरान से तेल खरीदने में hesitant हो जाते हैं, जिससे वैश्विक तेल की आपूर्ति और कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा ईरान के करीब एक अरब डॉलर के तेल व्यापार पर नए प्रतिबंधों ने इस क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया है। अमेरिका का उद्देश्य स्पष्ट है कि वह ईरान को उसके आतंकवादी वित्त पोषण से रोकना चाहता है और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना चाहता है। हालांकि यह प्रतिबंध ईरान की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगे, लेकिन इससे जुड़े भू-राजनीतिक तनावों के दूर होने की संभावना फिलहाल कम दिखती है।
अगले कुछ महीनों में यह देखना होगा कि ईरान और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील की बातचीत किस दिशा में बढ़ती है और इस प्रतिबंध का ईरान की रणनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।