झांसी न्यूज डेस्क: विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) आदित्य चतुर्वेदी की अदालत ने एक आपराधिक अपील को खारिज करते हुए साफ कहा कि अगर 24 साल पुराने किसी केस को दोबारा विचारण के लिए खोला जाएगा तो इससे कोर्ट पर अनावश्यक भार बढ़ेगा। कोर्ट ने माना कि ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष की भी जिम्मेदारी होती है कि वह समय रहते पैरवी करे और केस का निराकरण करवाए।
मामला रक्सा थाना क्षेत्र के परवई निवासी रंजीत से जुड़ा है, जिसे निचली अदालत ने 20 जनवरी 2024 को सबूत न मिलने के आधार पर बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ विशेष न्यायाधीश की अदालत में अपील दायर की गई थी। अपीलकर्ता का आरोप था कि निचली अदालत ने गवाहों को ठीक से तलब नहीं किया और आरोप तय होने के बाद पर्याप्त समय भी नहीं दिया गया।
कोर्ट ने पत्रावली की जांच के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष को इस केस में दलीलें रखने के लिए पूरे 22 साल का समय मिला था, लेकिन उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया। अदालत ने सवाल उठाया कि अभियोजन का यह विधिक दायित्व क्यों पूरा नहीं हुआ।
20 सितंबर को दिए आदेश में अदालत ने अपील को बलहीन बताते हुए खारिज कर दिया और रंजीत की बरी होने का निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा।