झांसी न्यूज डेस्क: महिला जिला अस्पताल की हालत पिछले पांच दशकों में लगातार बिगड़ती गई है। यहां आने वाली मरीजों की संख्या हर साल बढ़ती रही, लेकिन स्टाफ की संख्या उसी पुराने स्तर पर अटकी रह गई। नतीजा यह हुआ कि इलाज से लेकर देखरेख तक हर विभाग पर दबाव बढ़ गया है। हालात यह हैं कि जितने पद स्वीकृत हैं, उन पर भी पूरी तैनाती नहीं हो पाई है, जिससे व्यवस्था और कमजोर हो रही है।
1970-75 में जब यह अस्पताल अलग इकाई के रूप में शुरू हुआ था, तब सिर्फ 47 बेड और 48 स्थायी पद बनाए गए थे। आज बेड बढ़कर 78 हो चुके हैं और रोज लगभग 250 महिलाएं ओपीडी में पहुंचती हैं। महीने में 250 से ज्यादा सामान्य प्रसव और करीब 40 सिजेरियन होते हैं। नवजातों के लिए एसएनसीयू की सुविधा भी मौजूद है, मगर इतने वर्षों में न तो नए पद सृजित किए गए और न ही पुराने रिक्त पद भरे गए। सूत्र बताते हैं कि पिछले दस साल से लगातार शासन को पत्र भेजे जा रहे हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती।
सबसे बड़ी दिक्कत नर्सों की कमी की है। कम स्टाफ होने के कारण एक नर्स को दो-दो वार्ड संभालने पड़ते हैं, जिससे मरीजों की देखभाल प्रभावित होती है। सफाई कर्मचारियों से लेकर आया तक कई पद खाली पड़े हैं। एनएचएम से मिली चार संविदा नर्सें भी अस्पताल की बढ़ती जिम्मेदारियों के सामने नाकाफी हैं। सिर्फ एक स्त्री रोग विशेषज्ञ और एक डिप्लोमा धारक डॉक्टर ही सभी गर्भवतियों की सर्जरी संभालते हैं, और इनमें से कोई छुट्टी पर हो तो स्थिति काफी मुश्किल हो जाती है।
अस्पताल में 46 स्वीकृत स्थायी पदों में से 24 खाली पड़े हैं। एनेस्थेटिक और रेडियोलॉजिस्ट जैसे महत्वपूर्ण पद भी वर्षों से नहीं भरे गए। मजबूरन सोनोग्राफर पर काम का बोझ डालना पड़ रहा है, जबकि ऑपरेशन के लिए अस्थायी तौर पर जुड़ने वाले डॉक्टरों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के लिए रिक्त पदों पर तत्काल तैनाती बेहद ज़रूरी है।