इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए संसद में उठे महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया है। प्रस्ताव को औपचारिक रूप से 31 जुलाई को सदन के 146 सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ कदाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष ने एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन भी कर दिया है, जो आरोपों की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
क्या है पूरा मामला?
31 जुलाई को लोकसभा अध्यक्ष को सत्ता पक्ष और विपक्ष की संयुक्त पहल पर एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ, जिसमें भारत के राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि वे संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। प्रस्ताव में यह भी उल्लेख किया गया कि न्यायमूर्ति वर्मा पर “गंभीर कदाचार” का आरोप है, जिसके कारण उन्हें पद पर बने रहना अनुचित होगा।
लोकसभा अध्यक्ष ने प्रस्ताव स्वीकार करते हुए कहा,
"मुझे 146 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त हुआ है, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को उनके आचरण के कारण पद से हटाने की मांग की गई है। यह प्रस्ताव संविधान के अनुरूप पेश किया गया है।"
🔹 समिति का गठन
संविधान के अनुच्छेद 124(5) के तहत, लोकसभा अध्यक्ष ने एक तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है, जिसमें उच्च न्यायपालिका और विधिक क्षेत्र से अनुभवी व्यक्ति शामिल किए गए हैं:
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जस्टिस अरविंद कुमार – सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
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जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव – मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
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बी. वी. आचार्य – कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और प्रतिष्ठित विधिवेत्ता
यह समिति मामले की निष्पक्ष जांच करेगी और तय करेगी कि क्या न्यायमूर्ति वर्मा पर लगे आरोप इतने गंभीर हैं कि उन्हें पद से हटाया जाए।
आगे की प्रक्रिया क्या होगी?
इस समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट को संसद में रखा जाएगा। यदि समिति अपनी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी पाती है, तो संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित किया जाना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
जब तक जांच समिति की रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती, तब तक महाभियोग प्रस्ताव लंबित रहेगा।
क्या है महाभियोग प्रक्रिया?
भारत के संविधान के तहत, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को केवल दो आधारों पर पद से हटाया जा सकता है:
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दुराचार (misbehaviour)
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कर्म-दुर्बलता (incapacity)
इसके लिए संसद के किसी एक सदन में कम से कम 100 (राज्यसभा में) या 100 (लोकसभा में 100 से अधिक) सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव लाया जा सकता है। यह प्रस्ताव दोनों सदनों द्वारा पारित होना चाहिए।
न्यायपालिका में जवाबदेही पर बहस
यह घटनाक्रम भारतीय न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर एक नई बहस को जन्म दे रहा है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायिक पदों पर बैठे व्यक्तियों पर यदि कोई आरोप लगता है, तो उसकी निष्पक्ष और तेज़ जांच होनी चाहिए ताकि जनता का भरोसा कायम रहे।
निष्कर्ष:
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की स्वीकार्यता और जांच समिति का गठन भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। अब निगाहें समिति की रिपोर्ट और संसद की आगे की कार्रवाई पर टिकी होंगी। यदि दोष सिद्ध हुआ, तो यह भारत में न्यायपालिका के इतिहास में एक बड़ा अध्याय जोड़ सकता है।