राष्ट्र महासभा (UNGA) की 80वीं बैठक के दौरान बांग्लादेश के अंतरिम मुख्य सलाहकार और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने एक विवादास्पद भाषण दिया, जिसने दक्षिण एशियाई राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। अपने संबोधन में उन्होंने भारत पर शेख हसीना को शरण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव की मुख्य वजह शेख हसीना हैं। उन्होंने भारत से मांग की कि वह हसीना को वापस बांग्लादेश सौंपे ताकि देश में स्थिरता बहाल की जा सके।
यूनुस ने कहा, “जब से शेख हसीना की सरकार गिरी और वे भारत में शरण लेने पहुंचीं, भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में खटास आ गई है। अगर भारत वास्तव में पड़ोसी संबंधों को मजबूत करना चाहता है, तो उसे शेख हसीना को सौंप देना चाहिए।” उन्होंने यह भी दावा किया कि हसीना पर मानवाधिकार उल्लंघनों और सत्ता के दुरुपयोग के गंभीर आरोप हैं और उन्हें कानून का सामना करना चाहिए।
यूनुस के इस बयान के बाद UNGA के बाहर भारी विरोध देखने को मिला। शेख हसीना के समर्थकों ने एयरपोर्ट और महासभा स्थल के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। यूनुस पर अंडे फेंके गए और उन्हें “तानाशाही मानसिकता वाला नेता” कहकर संबोधित किया गया। उनके विरोधियों ने उन्हें बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये के लिए भी जिम्मेदार ठहराया।
इस सबके बीच यूनुस ने अपनी स्पीच में गाज़ा में हो रहे नरसंहार और म्यांमार में रोहिंग्या संकट पर भी चिंता जताई। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चेताया कि अगर गाज़ा में हिंसा नहीं रुकी, तो मानवता के नाम पर यह एक कलंक बन जाएगा। उन्होंने कहा, “दुनिया गाज़ा में हो रही तबाही पर खामोश है। आने वाली पीढ़ियां इस चुप्पी को कभी माफ नहीं करेंगी।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों की हालत बद से बदतर हो रही है, अंतर्राष्ट्रीय सहायता में कटौती से उनकी स्थिति और बिगड़ सकती है।
हालांकि, मुहम्मद यूनुस की आलोचना करने वालों का कहना है कि वे जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों के करीबी हैं और उनकी राजनीति बांग्लादेश में धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है। इसी कारण उनके भाषण को एकतरफा और राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित बताया जा रहा है।
UNGA में उनकी उपस्थिति के विरोध में न केवल बांग्लादेशी मूल के लोग बल्कि कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हुए, जिन्होंने उन्हें बांग्लादेश में अस्थिरता का प्रतीक बताया।
मुहम्मद यूनुस का यह भाषण न केवल भारत-बांग्लादेश संबंधों में नई चुनौती खड़ी करता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा और नेतृत्व को लेकर गंभीर सवाल उठाता है। अब देखना यह है कि भारत और वैश्विक समुदाय इस बयान पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति किस दिशा में जाती है।